मग्गा चोर !
बचपन में ‘मग्गा चोर’1 खेलते हुए बगीरा दूर पेड़ पर छुप जाता था। सोचता उसे कोई नहीं देख पाऐगा, पेड़ की शाखओं में। वो ऐसे छुपा रहता मानो कोई बिल्ली कुत्ते के डर से छुपी हुई हो। बड़ा गजब का खेल था मग्गा-चोर, अपने आप में। एक बोतल को दूर फेंक दिया जाता और चोर उसके पीछे उसे लेने जाता, उसके आने तक सब बच्चे छुप जाते अपनी-अपनी जगहों पर, फिर चोर उन बच्चों की तलाश करता।
![]() |
फोटो साभार-wikipedia |
उन बच्चों में से एक था बगीरा, अभी-अभी दूर गाँव से आया था शहर, अपनी चाची के घर रहने को। ईजा-बाज्यू ने सोचा कि शहर में जाकर पढ़-लिख लेगा तो आगे कुछ करेगा। उसकी चाची का घर यहीं था हमारे पड़ोस में और वो ही पहला वख़्त था, जब पहली बार मेरी उससे मुलाकात हुई थी। वैसे उसका और मेरा गाँव भी आस-पास ही था, मेरा तो गाँव जाना कम ही होता था पर उसकी चाची ने उसके बारे कुछ एक बातें बताई थी मेरी ईजा को तो मुझे भी पता चला, उसके बारे में थोड़ा।
वैसे उसका असली नाम दमुआ था। गाँव में जब भी किसी का कोई सामान धाऱ पार कराना हो या किसी के गाय-बाछों के लिए पेड़ से पात काटने हों तो झट से चड़ जाता था दमुआ, पेड़ पर। पेड़ में चढ़ने की इतनी उज2 उसके पास हुई कि गाँव के लोगों ने उसका नाम बच्चों के टीवी पर आने वाले कार्टून ‘मोगली’ के पात्र बगीरा पर रख दिया। तभी से वो बगीरा कहलाने लगा था। गाँव की सी सादगी, सीधापन लिए मग्गा चोर खेलते समय वो रोज उसी जगह, उसी पेड़ पर छुप जाता और आशा करता कि कोई उसे ढूंढ न पाये। आँखे मीचे, पेड़ की एक डाल पर वो भीगी बिल्ली की तरह दुपके रहता। आंखे बन्द करने का कारण शायद ये था कि वो अपनी आंखो की तरह दूसरांे की आंखों से भी अंधेरे में खो जाना चाहता था। पर आंख खोलते ही बगीरा के सामने असली दुनियां आ जाती और वो हमेशा की तरह सबसे पहले पकड़ा जाता, खेल के ज्यादातर हिस्से में वो ही चोर होता। शायद शहर आने पर भी वो यहां के रिवाजों को समझ न पाया था और अपनी सादगी और भोलेपन के कारण शहर के लोगों और सभ्यता से कट सा गया था। बगीरा की चाची ने उसका दाखिला एक सरकारी विद्यालय में करा दिया था, जबकी हम लोग जो उसके साथ मग्गा चोर खेलते शहर के प्रतिष्ठित अंग्रेजी माध्यम के ईसाई मिश्नरी स्कूल में पड़ते थे। शायद इसलिये भी बगीरा कट सा गया था शहरी समाज से।
![]() |
फोटो साभार- Farjana Drawing Academy |
अब हम इक्काईस साल के हो चले थे। बगीरा ने जैसे-तैसे बारहवीं की परीक्षा पास करके बी0ए0 प्रथम वर्ष में दाखिला ले लिया। साल में दो-तीन महीनों के लिये ईजा-बाज्यू के पास हो आता था, गांव। देने को तो कुछ था नहीं उनके पास, पर बगीरा हमेशा साथ में ले आता था, गांव का भोलपन और सादगी, या सभ्यता से कहें तो गवांरूपन। हां, ये ही शब्द ज्यादा अच्छा रहेगा शायद, उसके लिए। जहां हम सभी व आस-पास के लोग अंग्रेजी और हिन्दी में बात करते थे, बगीरा अब भी पहाड़ी लहजे में ही बोलता और पहाड़ी गाने ही गाता। अबके बार गांव जाकर कहीं से बांसूरी बजाना भी सीख लाया था, बगीरा। अब पहाड़ी गाने भी गाता और बांसूरी भी बजाता। इसी कारण कई बार अपने काॅलेज में उसे अपने लिए गवांरू शब्द सुनना पड़ा था। अब बड़ा हो गया था बगीरा, पर जब भी दुःखी होता तो उसी बांज के पेड़ के नीचे जाकर जहां वो बचपन में छुपा करता था घण्टों बैठे रहता, एक रिस्ता सा हो गया था बगीरा का उस पेड़ से। घण्टों उस घने जंगल को जो उस पेड़ से लगा हुआ था उसे निहारता, शायद सोचता होगा कि कितनी शान्ति है यहां पर, कोई कानून नहीं है कोई भेदभाव नहीं है, कोई ठुलजात कोई तलजात नहीं हैं बस सब एक हैं। दो चार आंसू इधर-उधर देख के बहाता और चला आता फिर, घर की तरफ।
अब घर के खर्चे बड़े तो चाची ने एक दिन कह ही दिया, बगीरा से, ‘‘कुछ काम-साम ही कर ले, तेरा खर्च भी निकल आऐगा और थोड़ा घर की भी मदद हो जाऐगी।’’ चाची बगीरा को अपना बेटा जैसा ही मानती थी क्योंकि कोई सन्तान न थी चाची की, सादी के कुछ सालों बाद चाचा चल बसे थे। शायद इसलिए भी भेज दिया था बगीरा को शहर ईजा ने, कि बेचारी विधवा का भी हस-प्राण3 लगा रहेगा। पर वो भी बेचारी मजबूर थी, ये बात बगीरा भी समझता था। उसने अपने लायक काम ढूंढना शुरू कर दिया। इन दिनों बगीरा को पता चला कि वो सभ्य समाज की दौड़ में कितना पीछे रह गया है, जहां जाता सुनने को मिलता, ‘‘अंग्रेजी आती है।’’ जवाब में बगीरा कह देता, ‘‘हल्की-फूल्की, सर!’’ पर हल्की-फुल्की का मतलब तो सब जानते ही थे। जैसे-तैसे करके बगीरा को एक रेस्टरेंण्ट में वेटर की नौकरी मिल गयी, फिर पढ़ाई से जैसे उसका नाता टूट ही गया। दिन भर काम करके जब रात को वापस आता तो शरीर जवाब दे देता। बी0ए0 की परीक्षा भी पास न कर पाया था बगीरा, तो पढ़ाई का खयाल अपने दिमाग से निकाल ही दिया।
![]() |
फोटो साभार- 123rf.com |
हमारे पड़ोस के ज्यादात्तर लोग जो बगीरा के साथ बचपन में खेला करते थे, आज उससे समाज में बात करने में भी शर्म महसूस करने लगे थे। बगीरा इन बातों पर कभी ध्यान नहीं देता और आते-जाते हेलो! बोल ही देता। आज भी बगीरा इतने सालों में शहर की सभ्यता को न सीख पाया था। शायद वो सीखना ही नहीं चाहता था। उसके लिये गांव की हवा ही ताजी हवा थी, गांव का पानी ही ताजा पानी था, गांव की भाषा ही सभ्य भाषा थी और गांव के रिवाज ही सही रिवाज थे। पर वो कहां जानता था की जिनको वो अपना मानकर सभ्य कह रहा है, वो तो आज के समाज से बहिष्कृत लोगों की परम्पराऐं हैं। शहर की ताजी हवा एअर प्यूरीफायर मंे, शहर का शुद्ध पानी बिसलरी की बोतल में और शहर की सभ्यता ‘‘जिंगल-बेल, जिंगल-बेल’’ बोलने में हो गयी है।
इन सब के बीच कलकी शर्मा ही एक मात्र ऐसी महिला या यूं कहें कि एकलौती लड़की थी, जो बगीरा के हैलो के बदले में उसे प्रतिउत्तर देती होगी। कलकी शर्मा हमारे पड़ोस में रहती थी, जो बचपन से उसे जानती थी और हमारे साथ खेला भी करती थी। कलकी के पिताजी शहर के एक प्रतिष्ठित बैंक में मैनेजर के पद पर थे। सभी आस-पास के लोग उसे कली कहकर पुकारते थे। गोरा रंग, लम्बा व पतला शरीर, चेहरे पर हंसी लिये कली सभी को अपने व्यवहार से प्रभावित करती थी। कली अपने मिलनसार स्वभाव व सभी की मदद को तत्पर रहने के कारण भी आस-पास के सभी लोगों द्वारा सम्मान पाती। हांलाकि कली दसवीं क्लास के बाद पढ़ाई करने के लिये अपनी नानी के वहां चेन्नई चली गयी थी, पर अपने पड़ोस की यादें उसके अन्दर आज भी ताजा थी। सुनने में आ रहा था की आगे की अपनी पढ़ाई वो यहीं से करेगी।
बगीरा अपने रेस्टोरेण्ट में व्यस्त रहने लगा था। शाम का वख़्त रहा होगा, बगीरा रेस्टोरेण्ट में था कि पांच-छः लड़के, लडकियों की एक टोली आकर बगीरा के रेस्टोरेण्ट में बैठ गयी। बगीरा ने आगे जाकर उनसे पूछा-
‘क्या लाऊँ, सर!’
तभी उनमें से एक लड़की ने उसे देखा और कुछ देर सोचने के बाद बोली-
‘पिज्जा मिलेगा।’
‘हां! मिलेगा।’ बगीरा ने कहा।
‘तो सबके लिए एक-एक ले आना।’
‘यस मैम’ कहता हुआ, बगीरा वहां से चला गया।
लड़की बार-बार बगीरा की तरफ देख रही थी, बगीरा समझ नहीं पा रहा था कि वो ऐसा क्यों कर रही है, पर बगीरा ने कोई ध्यान नहीं दिया। कुछ देर बाद बगीरा को उस लड़की ने पास बुलाया और बोली-
‘तुम बगीरा हो न।’
पहले तो बगीरा चैंक सा गया कि आखिर इस लड़की को मेरा नाम कैसे पता चला। फिर उसने कहा-
‘‘हां, पर आपको कैसे पता चला कि मेरा नाम बगीरा है।’’
वही दिन था जब बगीरा और कली का पहली बार आमना सामना हुआ था। उस दिन के बाद कभी-कभी रास्ते में या फिर जब कली अपने दोस्तों के साथ उसके रेस्टोरेण्ट में आती तो उन दोनो का मिलना हो जाता। बगीरा बड़े धैर्य और शान्त भाव से उससे कह देता, ‘हेलो‘। जवाब में उसे भी कली की ओर से ‘हेलो’ में प्रतिउत्तर मिल जाता। बस इतना सा ही रिस्ता था, बगीरा और कली का।
बाहर बारिश हो रही थी, जिसके कारण मौसम मे ठंडक बड़ गई थी। कली अपने एक पुरूष मित्र के साथ बगीरा के रेस्टोरेण्ट में आयी हुई थी। रोज की ही तरह बगीरा ने कयास भरी नजरों से उसे देखा और हेलो! कहते हुए अपना हाथ हिला दिया। पर आज उसे सामने से कोई प्रतिउत्तर न मिला। बगीरा खीज सा गया, उसे बड़ी आत्मग्लानी सी महसूस होने लगी। पहले उसने सोचा कि आज वो ऑर्डर पूछने न जाऐ पर फिर भी, वो चला ही गया।
‘क्या लेंगी आप, मैडम!’ बगीरा ने पूछा।
कली ने अपने पुरूष मित्र से पूछा,‘‘तुम क्या लोगे, राहुल‘‘।
कैफेचीनो! राहुल ने उत्तर दिया।
‘दो कैफेचीनो, प्लीज।’ कली ने बगीरा से कहा।
इस पूरे समय कली ने बगीरा की तरफ एक बार भी नहीं देखा, हांलाकि वो उसे देखता रहा था। काॅफी पीने के बाद कली वहां से अपने मित्र राहुल के साथ चले गयी। उस दिन बगीरा बड़ा उदास सा हो गया था। रात को घर लौटने के बाद हाथ में बांसूरी लिये वो उसी पेड़ के नीचे बैठा और देर तक बांसूरी बजायी। उदास आवाज में न्यौली4 गाते हुए सहज ही उसके मुंह से न्यौली के ये शब्द निकल पड़े-
‘कालि कोट सरज की, कभै धोये जन।
त्वेस दुख मैंस दुख, कभै रोये जन।।‘5
![]() |
फोटो साभार- Vincent Van Gogh |
दूसरे दिन, कली बगीरा को रास्ते में काॅलेज की तरफ जाते हुए दिखी तो बगीरा का मन हुआ कि उससे बात किये बिना ही वहां से चला जाए। पर बगीरा इतनी होशियारी कहां जानता था वो बोल पड़ा, हेलो! उसे पूरा भरोसा था कि सामने से कोई प्रतिक्रिया नहीं आऐगी पर कली ने भी रोज की तरह ही प्रतिउत्तर दे दिया, ‘हेलो! बगीरा‘। बगीरा थोड़ी देर तो सन्न सा रह गया फिर हंसता हुआ अपने रेस्टोरेण्ट की तरफ चल दिया।
कुछ हफ्तों बाद कली फिर से अपने उसी पुरूष मित्र राहुल जिसके साथ वो कुछ दिन पहले वहाँ आ चुकी थी व कुछ अन्य दोस्तों के साथ बगीरा के रेस्टोरेण्ट में आयी। इस बार बगीरा ने कली से कुछ न कहा था और न ही कली ने उसकी तरफ कोई विशेष ध्यान दिया। कली का मित्र राहुल, बीच में से बोल पड़ा।
‘वेटर’।
‘यश, सर!’ कहता हुआ बगीरा वहां गया और पूछा।
‘क्या लेंगे, सर!’।
‘सबके लिए एक-एक काॅफी और पिज्जा ले आना।‘ उसने कहा।
बगीरा सबके लिए आॅडर ले आया। कली और उसके सभी दोस्त बातों और काॅफी का आन्नद उठा रहे थे। बगीरा कली को अपने दोस्तों के साथ ठहाके लगाते हुए चुपके से देख रहा था। तभी, कली की एक दोस्त ने कड़ी आवाज में बगीरा को बुलाते हुए कहा-
‘इधर आओ, तुम्हारी तो अभी खैर लेती हूँ।‘
बगीरा घबराते हुए उसके पास गया और बोला-
‘यश, मैम....।’
रेस्टोरेण्ट में एकदम से सन्नाटा छा गया कोई ये नहीं समझ पा रहा था कि आखिर माजरा क्या है। कली भी अन्जान सी मुद्रा में बगीरा और अपनी मित्र को देख ही रही थी कि कली की दोस्त ने बगीरा से भला-बुरा कहना शुरू कर दिया-
‘तुम लोगों को जब पिज्जा बनाना नहीं आता तो बनाते क्यों हो, जाहिल कहींके!’
कली की मित्र पिज्जा के बुरे स्वाद को लेकर गुस्सा थी। बगीरा सर झुकाये सब चुपचाप सुन रहा था। तभी बीच में से किसी ने गरजती आवाज में कहा, ‘सैट ऑप’। बगीरा को ये आवाज जानी पहचानी लगी। उसने सर उठाकर देखा तो पाया कि कली अपनी मित्र से बात कर रही थी-
’‘ये कोई बात करने का तरीका है तुम्हारा, किसी इन्सान से इस तरह बात की जाती है’’ कली ने अपनी मित्र से कहा।
बगीरा बड़े अपनेपन से कली की ओर देख रहा था और सोच रहा था कि कली ने उसके लिये अपने दोस्तों से लड़ाई की। हांलाकि पूरी घटना में कली ने बगीरा को जानने की बात तक नहीं की थी, पर बगीरा जैसे गांव के सीधे-साधे गंवार के लिए ये समझना बस की बात कहां हुई। उसके लिए तो बस इतना ही काफी था कि उसके लिए कोई बोला और वो भी, कली। उसके बाद क्या बातें हुई, बगीरा के न जाने कहां से उड़ गईं। वो कुछ समझ नहीं पा रहा था कि आखिर क्या हो रहा है, वो बस कली को देखते ही रहा। बस उसे जो याद रहा कि उसके बाद कली वहां से कुछ अंग्रेजी में बोलते हुए गुस्से मे चली गयी थी। उस दिन बगीरा रात को घर लौटने के बाद उसी बांज के पेड़ के नीचे गया पर आज वो उदास नहीं था। वो तो कली के बारे में सोचता हुआ यूं ही वहां चला आया था, शायद। उसे कुछ महसूस नहीं हो रहा था। उसके चारों तरफ बस कली ही घूम रही थी। कली की वो आवाज उसके कानों में गुंजते जा रही थी कि किस तरह कली उसके लिए अपने दोस्तोें की परवाह किये बिना लड़ी। कली उसे उस प्रेमिका रजुला की तरह लगने लगी थी, जिसकी कहानी वो बचपन में अपनी ईजा से सुना करता था। जो अपने प्रेमी मालू6 के लिये अपने पति से लड़कर, तोता होकर उसके साथ तिब्बत देश से उड़कर वैराठ आ गयी थी। उस रात देर तक वो कली के बारे में सोचकर बांसूरी बजाता रहा था।
![]() |
फोटो साभार-Google.com |
दूसरा दिन बगीरा को नया सा लगा। उसने सोच लिया था कि वो कली से मिलने के बाद कल के लिए ‘थेंक्यू’ बोलगा, कई सारी बातें करेगा। पर उस दिन कली उसे कहीं नहीं मिली। वो हर रात आता और उस पेड़ के नीचे जाकर रोज कली से होने वाली आगामी मुलाकातों के बारे में सोचता रहता कि कैसे वो कली से ‘थेंक्यू’ बोलेगा और कैसे वो कई देर तक उससे बातें करेगा। इसी रोमानियत में वो खोया रहता, पर कली उसे उस दिन के बाद कई दिनों तक नहीं दिखी और न ही वो उसके रेस्टोरेण्ट में आयी। इसी बीच बगीरा की चाची भी चल बसी। बगीरा के सर पर घर की पूरी जिम्मेदारी सी आ गयी। इन सब बातों के बीच बगीरा को कभी समय ही नहीं मिला कि वो कली से मिल ले, पर हर रात वो उस पेड़ के पास जाकर कली के बारे में सोचना नहीं भूलता। धीरे-धीरे शहर का पर्यटन भी जाता रहा, बगीरा के रेस्टोरेण्ट मालिक ने रेस्टोरेण्ट भी बंद कर दिया। अब बगीरा के सामने दो वक्त के खाने की भी मुसीबत खड़ी हो गयी। कई जगह काम की तलाश की पर काम न मिल पाया। कभी खाली पेट, कभी पड़ोसियों से मांगकर बगीरा के दिन कट रहे थे। काम की तलाश में बगीरा घर से बाहर ही रहता था।
एक दिन रात को घर लौटने के बाद, जब उसने दरवाजा खोला तो देखा, शादी का एक कार्ड उसके आंगन में पड़ा हुआ है। कार्ड खोलने पर पता चला कि कली की शादी उसके उसी पुरूष मित्र राहुल से हो रही है, जो उसके रेस्टोरेण्ट में कली के साथ आया करता था। जब बगीरा ने पड़ोस में पता करा तो मालूम हुआ कि कली व उसका पति दोनो शादी के बाद देश छोड़कर लण्डन बसने के लिए जा रहे हैं। ये सुनकर बगीरा का मन तो हुआ कि जोर से रो पड़े पर आंसू चाहकर भी न बहा पाया था, बगीरा उस वख़्त। शादी के दिन, जब हम सब साथी कली की शादी की दावत का आन्नद उठा रहे थे, दुल्हा व दुल्हन के जोडे़ के मैच व मिसमैच की बातें कर रहे थे, बगीरा कली के घर के एक कोने में खड़े होकर चुपचाप कली की शादी होते देख रहा था। शायद सोच रहा था कि आज उसके गीतों की राजूला फिर से अपने मालूशाही से बिछड़ जाऐगी।
इसी सोच में शादी का समारोह अपने अन्तिम पड़ाव में पहुँच गया। बराती अपना सजो समान समेट रहे थे। माता-पिता और घर के बड़े वर-वधु को विदा करने के लिए आर्शीवाद दे रहे थे। बगीरा चुपचाप ये सब देख रहा था। जाते वख़्त, एक बार देखा था शायद कली ने बगीरा की तरफ। शायद एक बार बगीरा न भी सोचा कि रोक लूं कली को पर कुछ बोल न पाया था, बगीरा उसे। उस रात बगीरा उसी बाँज के पेड़ के नीचे आया जहाँ वो अक्सर आया करता था, खड़े होकर बहुत देर तक उस पेड़ को देखता रहा क्योंकि कितनी ही रातें उसने अपने ख़्यालों में कली को गीत सुनाते हुए यहीं बितायी थी। कितने ही बसंत, कितने ही पतझड़, कितने ही जाड़े उसने कली को याद करके यहीं बिताये थे। उसकी आँखों के आगे कौंध सा गया था, वो सब। उस दिन बैठने की हिम्मत न कर पाया बगीरा। मानो हजारों बसंतों, हजारों पतझड़ों, हज़ारों जाड़ों का बोझ आज उसके कंधों पर आ गया हो। फिर कहीं गायब सा हो गया बगीरा, उस दिन के बाद। एक दिन हमने अखबार में खबर पड़ी कि,‘‘शहर के एक सेठ के घर से कुछ किलो आटा-चावल और खाने पीने का सामान चोरी हो गया है, पुलिस ने बगीरा नाम के शातिर चोर को पकड़ा है।’’ बगीरा अब मग्गा चोर से बग्गा चोर बन चुका था।
इसी सोच में शादी का समारोह अपने अन्तिम पड़ाव में पहुँच गया। बराती अपना सजो समान समेट रहे थे। माता-पिता और घर के बड़े वर-वधु को विदा करने के लिए आर्शीवाद दे रहे थे। बगीरा चुपचाप ये सब देख रहा था। जाते वख़्त, एक बार देखा था शायद कली ने बगीरा की तरफ। शायद एक बार बगीरा न भी सोचा कि रोक लूं कली को पर कुछ बोल न पाया था, बगीरा उसे। उस रात बगीरा उसी बाँज के पेड़ के नीचे आया जहाँ वो अक्सर आया करता था, खड़े होकर बहुत देर तक उस पेड़ को देखता रहा क्योंकि कितनी ही रातें उसने अपने ख़्यालों में कली को गीत सुनाते हुए यहीं बितायी थी। कितने ही बसंत, कितने ही पतझड़, कितने ही जाड़े उसने कली को याद करके यहीं बिताये थे। उसकी आँखों के आगे कौंध सा गया था, वो सब। उस दिन बैठने की हिम्मत न कर पाया बगीरा। मानो हजारों बसंतों, हजारों पतझड़ों, हज़ारों जाड़ों का बोझ आज उसके कंधों पर आ गया हो। फिर कहीं गायब सा हो गया बगीरा, उस दिन के बाद। एक दिन हमने अखबार में खबर पड़ी कि,‘‘शहर के एक सेठ के घर से कुछ किलो आटा-चावल और खाने पीने का सामान चोरी हो गया है, पुलिस ने बगीरा नाम के शातिर चोर को पकड़ा है।’’ बगीरा अब मग्गा चोर से बग्गा चोर बन चुका था।
1.लुक्का छुप्पी जैसा एक खेल 2.ताकत 3.मन लगा रहना 4.पहाड़ों पर गया जाने वाला विरह गीत 5. सरज के कपड़े की बनी काली कोट कभी न धोना। तुम्हें भी कष्ट है, मुझे भी कष्ट है, अतः तुम कभी मत रोना।। 6.कुमाऊँनी लोकगथाओं का एक नायक।
लेखक- तरुण पाठक
हमारा फेसबुक पेज लाइक करें- @Deodar Online
0 Please Share a Your Opinion.: