रात !
सबसे पहले
शरू होता है माँ का दिन, मुँह अंधरे
और सबके बाद तक
चलता है,
छोटी होती है
माँ की रातें नियम से ,
और दिन
नियम से लम्बे
रात में दूर तक धंसे हुए ,
इसे कोई भी
दिन की घुसपैठ नहीं
मानता
माँ की रात में ,
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फोटो साभार- Vincent Willem Van Gogh |
पैर सिकोड़कर
रोज़ सोती है
गुड़ी-मुड़ी माँ
बची-खुची रात में,
पैर फ़ैलाने लायक
लम्बी भी नहीं होती
माँ की रात!
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