Monday, 27 January 2020

कविता : ज़िलाधीश- आलोक धन्वा : आलोक धन्वा की कविता ज़िलाधीश : Deodar Online

ज़िलाधीश 

तुम एक पिछड़े हुए वक्ता हो.

तुम एक ऐसे विरोध की भाषा में बोलते हो
जैसे राजाओं का विरोध कर रहे हो !
एक ऐसे समय की भाषा
जब संसद का जन्म नहीं हुआ था!

तुम क्या सोचते हो
संसद ने विरोध की भाषा और सामग्री को
वैसा ही रहने दिया
जैसी वह राजाओं के ज़माने में थी?

यह जो आदमी
मेज़ की दूसरी ओर सुन रहा है तुम्हें
कितने क़रीब से और ध्यान से
यह राजा नहीं है ज़िलाधीश है!

Image result for modern art social issue justice sketch
फोटो साभार- Px fuel  

यह ज़िलाधीश है
जो राजाओं से आम तौर पर
बहुत ज़्यादा शिक्षित है
राजाओं से ज़्यादा तत्पर और संलग्न!

यह दूर किसी किले में - ऐस्वर्य  की निर्जनता में नहीं
हमारी गलियों में पैदा हुआ एक लड़का है
यह हमारी असफलताओं और गलतियों के बीच पला है
यह जनता है हमारे साहस और लालच को
राजाओं से बहुत ज्यादा धैर्य और चिंता है इसके पास

यह ज़्यादा भ्रम पैदा कर सकता है
यह ज़्यादा अच्छी तरह जुमे आज़ादी से दूर रख सकता है
कड़ी निगरानी चाहिए
सरकार के इस बेहतरीन दिमाग पर!

कभी-कभी तो इससे सीखना भी पड़ सकता है!

0 Please Share a Your Opinion.: