Friday 21 February 2020

उत्तराखंड का इतिहास - कथा कलविष्ट - गोलू ग़ैराड मंदिर - History of Uttarakhand - Kalvist - GoluGairad temple - DeodarOnline

कलविष्ट

लगभग 200 वर्ष पूर्व कल्लू कोट्यूड़ी नाम का एक राजपूत पाटिया गांव के पास के गांव कोट्यूड़ा कोट में रहता था। उसके पिता का नाम केशव कोट्यूड़ी था। उसकी माता का नाम दुर्पाता (द्रोपादी) था। दुर्पाता के पिता का नाम रामाहरड़ था। 



कल्लू कोट्यूड़ी बहुत ही वीर व साहसी पुरूष था। वह किसानी का काम भी किया करता था परन्तु राजपूत होने के कारण वो ग्वाले का काम भी करता था। कलविष्ट अपनी गायों को चराने के लिए बिनसर के घने जंगलों में जाता था। कहा यह भी जाता है वह गायों को चराने के लिए कठधारा के जंगलों में तथा नहाने के लिए ब्रह्मा घाट (कोशी) में जाता था।

कल्लू कोट्यूड़ी के पास निम्न सामान होना बताया जाता है- मुरली, बांसुरी, मोचंगण् पखाई, रमटा, घुंघरवालों दातुलो, रतना, कामली, झपुवा, कुत्ते, बिल्ली, लखमा, खनुवा लाखो, रूमेली, घुमेली, गाय, भगुवा, रांगो (भैसा), नागुली, भागुली, भैंसी, सुनहरी दातुलो, सै लणी सै, बाखुड़ी भैस। कोई-कोई कल्लू कोट्यूड़ी के पास 12 बागुड़ भैसें तथा 12 भैसें जतिये होना बताते है।

ग्वाला होने के कारण कल्लू कोट्यूड़ी के पास दूध-दही की कोई कमी नही थी। वो बिनसर के सिद्ध गोपाली के वहां दूध पहुँचाया करता था। गांव के ही थोकदार श्री कृष्ण पाण्डे जी के वहां कल्लू कोट्यूड़ी का आना जाना था श्री कृष्ण पाण्डे जी कलविष्ट के अच्छे मित्र हुआ करते थे। कल्लू कोट्यूड़ी को मुरली बजाने का शौक था जिससे वो अपने गायों व भैसों के रेवड़ को हांकता था। कल्लू कोट्यूड़ी के मित्र श्री कृष्ण पांडेय जी की नौलखिया पाण्डे से लड़ाई थी दोनों एक दूसरे को नुकसान पहुंचाने के लिए आतुर रहते थे। एक बार नौलखिया पाण्डेजी श्री कृष्ण पाण्डेजी को नुकसान पहुँचाने के लिए ’’भराड़ी’’ नामक एक भूत को देश से लाए परन्तु कल्लू कोट्यूड़ी एक साहसी व वीर पुरूष था, भूतों को भगाने मे भी उसे महारथ हासिल थी। श्रीकृष्ण पाण्डेजी के ऊपर विपत्ति आती देख कल्लू कोट्यूड़ी ने भराड़ी भूत को हरा त्यूनीगाड़ में एक पत्थर के नीचे दबा दिया। बाद में भराड़ी के प्रार्थना करने पर कल्लू कोट्यूड़ी ने उसे छोड़ दिया।

अपनी किसी भी योजना को सफल न होता देख नौलखिया पाण्डेजी ने कल्लू कोट्यूड़ी तथा श्री कृष्ण पाण्डेजी के बीच मनमुटाव करने की सोची तथा पूरे गांव में ये खबर फैला दी कि श्री कृष्ण पाण्डेजी की स्त्री और कल्लू कोट्यूड़ी गुप्त रूप से श्री कृष्ण के पीठ पीछे मिलते हैं। श्री कृष्ण पाण्डेजी जानते थे कि ये सब बातें झूठी हैं पर लोक लाज से बचने के लिए उन्होनें कल्लू कोट्यूड़ी को मारने की सोची। हालांकि कई लोग मानते हैं कि श्रीकृष्ण पाण्डेजी की स्त्री कल्लू कोट्यूड़ी के रूप रंग और साहस पर मोहित हो गयी थी। इसलिए पांडे जी ने कलविष्ट को मारने की सोची।

श्री कृष्णा पाण्डे जी राजा के पुरोहित थे तो उन्होने राजा से कल्लू कोट्यूड़ी को सजा दने की विनती की और उसे मार देने को कहा। राजा ने चारों ओर पत्र भेजे कि कौन कल्लू कोट्यूड़ी को मारने का बीड़ा उठाता है। लेकिन कल्लू कोट्यूड़ी की वीरता चारों तरफ प्रसिद्ध थी इसलिए ऐसा करने को कोई भी राजी न हुआ अंत मे जयसिंह टम्टा ने ये बीड़ा उठाया।


एक दिन राजा ने कल्लू कोट्यूड़ी को अपने दरबार में आमन्त्रित किया। उस दिन श्राद्ध था राजा ने कल्लू कोट्यूड़ी से दूध-दही लाने को कहा। कल्लू कोट्यूड़ी इतना दूध-दही लेकर के गया कि राजा चकित हो गया। कल्लू कोट्यूड़ी के माथे पर त्रिशूल व पैरों में पद्म के फूल का निशान था। राजा उसका रूप देख कर चकित हो गया तथा उसे न मारने की बात कही। कल्लू कोट्यूड़ी ने राजा के दरबार में कई तरह के करतब भी दिखाए जिससे राजा बहुत प्रसन्न हुआ।

राजा ने एक दिन कल्लू कोट्यूड़ी तथा जयसिंह टम्टा के बीच कुश्ती करवाई यह शर्त के साथ कि जो हारेगा उसकी नाक काटी जाऐगी। कल्लू कोट्यूड़ी की वीरता के सामने जयसिंह टम्टा टिक नहीं पाया तथा उसकी नाक काटी गयी। राजा के दरबार में कल्लू कोट्यूड़ी की धाक बन गई। कल्लू कोट्यूड़ी की इस सफलता से कई लोग जलने लगे। उन्होने उसे मारने के लिए षड्यंत्र किया।

दयाराम पछाई जो पाली पछाऊ का रहने वाला था उसने षड्यंत्र के तहत कल्लू कोट्यूड़ी से कहा कि वो अपने भैसों को लेकर चैरासी माल (तराई-भावर) जाए तो उसे अपने जानवरों के लिए अच्छे चराहागाह उपलब्ध हो सकते हैं। दयाराम पछाई ने सोचा कि अगर कल्लू कोट्यूड़ी तराई-भावर चला गया तो या उसे मुगल सेना मार देगी या वो चैरासी के जंगली जानवरों द्वारा मार दिया जाएगा और उसका षड्यंत्र कामयाब होगा। कल्लू कोट्यूड़ी ने नथुवाखान, रामगाड़, भीमताल होकर भावर में प्रवेश किया। वहां यह खबर फैल गयी कि एक वीर पुरूष अपने जानवरों के साथ् पहाड़ से भावर में पहुँचा है। वहां उसे 1600 मुगल सेना मिली जिसके नेता सूरम खान व भागू पठान थे। कल्लू कोट्यूड़ी को मारने के लिए गजुवा ढिंगो तथा भाम कूर्मी भी मुगल से मिल गए।

कल्लू कोट्यूड़ी की ताकत को आजमाने के लिए उन्होनें कल्लू कोट्यूड़ी से एक भारी लकड़ी की बल्ली को उठाने के लिए बोला जिसे कल्लू कोट्यूड़ी ने आसानी से उठा दिया। जिससे वो लोग घबरा गये कहीं कल्लू कोट्यूड़ी उन्हें मार न डाले। कल्लू कोट्यूड़ी को मारने के लिए उन्होनें मेले का आयोजन किया, परन्तु कल्लू कोट्यूड़ी के जानवरों ने कल्लू कोट्यूड़ी को इस षड्यंत्र की सूचना दे दी। मेले मे कल्लू कोट्यूड़ी ने कहा कि वो पहाड़ी नाच दिखाऐगा नाचते-नाचते कल्लू कोट्यूड़ी ने उस लकड़ी की बल्ली से उन सबको मार दिया।

फोटो साभार - euttaranchal.com

उसके बाद कल्लू कोट्यूड़ी अपने जानवरों को चराने के लिए चैरासी के जंगल को चले गया। वहां उसने देखा कि सारा जंगल शेरों से भरा पड़ा है। कल्लू कोट्यूड़ी ने उस जंगल के सभी शेरों को एक-एक करके मार दिया। जंगल के सबसे बड़े शेर को कल्लू कोट्यूड़ी के खनुवा लाखे (बड़े आकार का बकरा) ने मार दिया।

चैरासी से चलकर कल्लू कोट्यूड़ी अपने खिलाफ रचे षड्यंत्र का बदला लेने दयाराम पछाई के वहां पाली पछाऊ गये। वहां कल्लू कोट्यूड़ी को देख दयाराम डर गया तथा अनजान बनते हुए कल्लू कोट्यूड़ी से पूछा चैरासी कैसा था। कल्लू कोट्यूड़ी ने उत्तर दिया चैरासी तो अच्छी है पर वहां शेर बहुत हैं। कल्लू कोट्यूड़ी को जीवित देख दयाराम को शक हुआ तो उसने पता लगवाया और उसे पता चला कि चैरासी के सारे शेर मारे जा चुके हैं।
कल्लू कोट्यूड़ी ने दयाराम पछाई को अपने खिलाफ षड्यंत्र करने के लिए श्राप दिया कि अगर उसे अब छल से मारा गया तो वो भूत बनकर पालीपछाऊ के लोगों को परेशान करेगा और है भी ऐसा ही इस समय कल्लू कोट्यूड़ी की पूजा पालीपछाऊ मे ही ज्यादा होती है।

अनेक जतन करने के बाद भी जब कल्लू कोट्यूड़ी को मारा न जा सका तो श्री कृष्ण पाण्डे जी ने लखड्योड़ी नाम के उसके साढूभाइे जेा श्री कृष्ण के वहां मुंशी था को भड़काया कि वो किसी तरह से कल्लू कोट्यूड़ी को मारे। लखड्योड़ी ने कल्लू कोट्यूड़ी की भैसों के पैरों मे कील ठोक दी फिर लखड्योड़ी कल्लू कोट्यूड़ी से मिलने गया कलविष्ट ने उसके आने का कारण पूछा तो लखड्योड़ी ने कहा कि,’’वो कल्लू कोट्यूड़ी से भैसें लेने आया है। कल्लू कोट्यूड़ी ने उससे कहा, ’’वो जितनी भैसें चाहता है ले जा सकता है। लखड्योड़ी ने पहले से ही भैसों के पैरों में कीलें ठोक दी थी। उसने कल्लू कोट्यूड़ी से कहा तुम्हारी भैसों के पैरों में तो कीलें ठूकी हुई है।

कल्लू कोट्यूड़ी ने मुंह से भैसों के पैर से कील निकालने की कोशिश की उसी समय लखड्योड़ी ने कल्लू कोट्यूड़ी के पैर काट दिये व कल्लू कोट्यूड़ी को मार डाला। कल्लू कोट्यूड़ी ने मरते-मरते उसे श्राप दिया कि उसने उसे छल से मारा है। इसलिए लखड्योड़ी के खानदान में कोई जीवित नही बचेगा।

कल्लू कोट्यूड़ी मरकर कलविष्ट नाम का ग्राम देवता बन गया। सबसे पहले वो श्रीकृष्ण पाण्डे जी के लड़के को लगा। जब जागर लगायी गई तो पता चला वे कलविष्ट है। कलविष्ट ने कहा कि उसका मन्दिर बनाके उसकी पूजा की जाए वरना वो उनको सताऐगा।


ये घटना कपड़खान में हुई और वहीं पहला मन्दिर बनाया गया जो गोलू गैराड़ के नाम से प्रसिद्ध है। बिनसर के लोग आज भी बोलते है कि कलविष्ट की मुरली की मघुर तान तथा कलविष्ट के भैसों को बुलाने की आवाज गाँव वालों को अकसर सुनाई पड़ जाती है। कपड़खान के लोग अपने जानवरों की रक्षा के लिए कलविष्ट से अभी भी प्रर्थना करते हैं, और सताए हुए लोग कलविष्ट से न्याय मांगते हैं।






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