Thursday 30 April 2020

हिंदी कविता : छुटपन - मेरा घर : Hindi kavita : Chutpan : Deodar Online

छुटपन- मेरा घर

छोटे थे सपने, छोटी थी उड़ान
छोटे थे रास्ते, छोटी थी मंजिलें
छोटे थे हम, छोटा था जहान

याद है मुझको अब भी बचपन का वो पल
खेला कूदा करते थे जहाँ हम कल
करते थे बरसाती में उछल-कूद
छोटी सी बात पर लड़ जाना
बैरिंग के पहियों की आवाज
न था सुर उसमें न थी ताल
पर सुरिले थे वो कितने
चुने हुए सरगमों की तरह
उफ! छूट गया वो सब

बर्फ में खेलना
लकड़ी की बर्फ वाली गाड़ी
पाइप से बनी जीवन चक्र की तरह,
गोल-गोल रत्ती गाड़ी।

Chutpan -Mera ghar

काॅलेज की कैंटिन से कोक, पेप्सी के ढक्कन ढूंढना
काँच की गोलियों मे सारा जीवन
दिवाली की हफ्तों पहले तैयारी
एक-एक करके जलाना मुर्गा छाप बम।

आज सब हैं वहाँ, पर हम नहीं
न सुर, न साझ, न संगीत
अब नजर आता है तो बस,
कल की सोच मे ढूबा जीवन
उलझने, परेशानियाँ, जिम्मेदारियाँ

सोचता हूँ अगला जीवन मिले तो 
फिर वहीं पैदा हूँ, हाँ वहीं
जहाँ बजता है साझ जीवन का
बैरिंग गाड़ी का, चकरी का, बचपन का,
काँचों की खनखनाहट बनाती है जहाँ जीवन।



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