Friday 4 September 2020

Amrita Pritam -Hindi Kavita-Pahchan-Mera_Pata-Rozi-Best of Amrita Pritam

 
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पहचान 

तुम मिले 
तो कई जन्म 
मेरी नब्ज़ में धड़के 
तो मेरी सांसों ने तुम्हारी सांसों का घूंट पिया 
तब मस्तक में कई काल पलट गए---

एक गुफ़ा हुआ करती थी 
जहाँ मैं थी और एक योगी 
योगी ने जब बाजुओं लेकर 
मेरी सांसों को छुआ 
तब अल्लाह कसम!
यही महक थी जो उसके होंटो से आई थी---
यह कैसी माया कैसी लीला
कि शायद तुम ही कभी वह योगी थे 
या वही योगी है--
जो तुम्हारी सूरत में मेरे पास आया है 
और वही मैं हूँ ---- और वही महक है ---



अमृता प्रीतम !




मेरा पता 

आज मैंने 
अपने घर का नंबर मिटाया है 
और गली के माथे पर लगा 
गली का नाम हटाया है 
और हर सड़क की 
दिशा का नाम पोंछ दिया है 
पर अगर आपको मुझे ज़रूर पाना है 
तो हर देश के, हर शहर की,
हर गली द्वार खटखटाओ 
यह एक शाप है, यह एक वर है 
और जहाँ भी 
आज़ाद रूह की झलक पड़े 
समझना वह मेरा घर है--


अमृता प्रीतम !


रोज़ी 

नीले आसमान के कोने में 
रात-मिल का साइरन बोलता है 
चाँद की चिमनी से 
सफ़ेद गाढ़ा धुँआ उठता है 

सपने- जैसे कई भट्टियां हैं 
हर भट्टी में आग झाँकता हुआ 
मेरा इश्क़ मजदूरी करता है 

तेरा मिलना ऐसे होता है  
जैसे कोई हथेली पर 
एक वक़्त की रोज़ी रख दे

जो खाली हंडिया भरता है 
राँध-पकाकर अन्न परसकर 
वही हाँडी उल्टा रखता है 

बची आँच पर हाथ  है 
घड़ी पहर को लेता है 
और ख़ुदा का शुक्र मानता है

रात-मिल  साइरन बोलता है 
चाँद  चिमनी में से 
धुँआ इस उम्मीद पर निकलता है 
 
जो कमाना है वही खाना है 
न कोई टुकड़ा कल का बचा है 
न कोई टुकड़ा कल के लिए है---



अमृता प्रीतम !















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