अन्तिम सन्देश !
प्रिय साथियों! आज अभिनन्दन अन्तिम बार तुम्हारा,
जन्म-जन्म तक सम्बल होगा, पावन प्यार तुम्हारा।
है अन्तिम सन्देश-अमर हो यह संघर्ष हमारा,
पौरुष के पथ पर जाग्रत हो, भारत वर्ष हमारा।
मुक्त देश ही जग में जीवित रहने का अधिकारी,
आज देश की मुक्ति-साधना पावन सिद्धि हमारी।
वरण करो इस महा-सिद्धि को संघर्षों के द्वारा,
इंक़लाब ही रहे हमारा युगों-युगों तक नारा
इंक़लाब की आग रहे जीवित प्राणों के हावी से,
माँग रहा युग सवेरा आज शौर्य के रवि से।
ज़ीवन की बलि माँग रही है धरती की आज़ादी,
देखें कौन डटा रहता है लिए प्राण उन्मादी।
यह साम्राज्य-वाद का दानव जब तक हार न माने,
डटे रहें बलिपंथी बन कर धरती के दीवाने।
शोणित के पथ पर चल कर जो आज़ादी आयेगी,
अपना मूल्य स्वयं वह हमको आकर समझाएगी।
अतः संधि की मृग-मरीचिका हमें नहीं भटकाए,
जलते अंगारों पर कोई राख न जमने पाए।
अपमानों के घूंट हमारे लिये ज़हर बन जायें,
भारत के संकल्प शत्रु के लिये कहर बन जायें।
रक्त हमारा, इस धरती की फसलों में लहराये,
रक्त हमारा, सुमन-दलों में सौरभ बन मुस्काये।
रक्त हमारा बने हमारे बलिदानो का दर्पण,
पितृ-शहीदों का हो अपने उष्ण रक्त से तर्पण।
जाते-जाते एक बात यह भी तुम से कह जायें,
अपनों से ही क्यों रहस्य कुछ बिना कहे रह जायें।
मुक्ति-वरण नहीं राज्य के मद में परिवर्तन हो,
बलिदानों का मूल्य माँगने का न कभी प्रचलन हो।
जिस दिन मन में सत्ता का मद और अहं उपजेगा,
उस दिन अहं तुम्हारा ही यह तुमको ले डूबेगा।
जो गोलियाँ दाग कर तुम यह सत्ता चले मिटने,
उन्हीं गोलियों के बन सकते, तुम भी कभी निशाने।
जो कहना था, तुम से कह कर विदा हुए जाते हैं,
मन चाही मिल रही मौत, हम तीनों मदमाते हैं।
मरा समझ कर हमें, कभी आँसू नहीं बहाना,
हमें याद कर बलिदानों की सुखद प्रेरणा पाना।
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