Sunday 22 August 2021

One Winter Evening : DeodarOnline


 I was tired of rising up in tears, 

I can’t put to bed, these fears. 

New to this grief, unexplained, 

Not a stranger to heartache and pain. 

Fire inside me is burning me alive, 

I fathom to let it burn than to leave and let it die. 

Am I a silhouette, asking every now and then, 

Will it be over? Will I ever feel better again?

A silhouette, hunting lost treasures on my own, 

The more I try, the more I'm alone.

So, I watch the winter sun to lead me home,

So sick of the past, trapped in my scone.

Friday 5 March 2021

THE RECLUSE MARINER : DEODARONLINE

 

SAILING AT NAINITAL

 

WITH THE HAUL OF BREEZE, 

I STAND,

 UN-FREQUENTED.

WITH THE MAST, RISING AND FALLING.

WARM SUN AROUND ME, 

WILD WATER UNDER ME,

SCREAMING, CALLING AND ASKING.

WHY DO I LOOK FOR A PLACE TO REST?

WHEN I MIGHT SAIL TO A CALMER HEAVEN,

OR, SAIL PAST THE WOODS THROUGH AVON.

GAZING THROUGH THE SKY OF STARS,

INTO THE PERIL OF EMPTINESS. 

FEELING THE THRILL OF PASSING AIR,

ON THE PATH OF PIOUSNESS. 

~ Manas Pathak

 IG - @_manaspathak_

 

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Wednesday 30 September 2020

Rampur Thirah Kand- उत्तराखंड आंदोलन-रामपुर तिराहा गोलीकांड-DeodarOnline

 रामपुर तिराहा कांड 

रामपुर तिराहा कांड



उत्तराखंड आंदोलन मे 2 अक्टूबर 1994 का दिन काले अक्षरों में लिखा जाता है जब दिल्ली रैली में भाग लेने जा रही उत्तराखंड की  भोली भाली जनता को उत्तरप्रदेश सरकार की दमनकारी नीति का शिकार होना पड़ा। 

    उत्तराखंड आंदोलन में दिसम्बर 1993 में बसपा के समर्थन पर मुलायम सिंह यादव की सरकार बनी और शासकीय सेवाओं में अन्य पिछड़ी जातियों के लियें 27 प्रतिशत आरक्षण लागू कर दिया गया। 17 जून 1994 में शिक्षण संस्थानों में प्रवेश पाने हेतु भी अन्य पिछड़ी जातियों के लिये 27 प्रतिशत आरक्षण व्यवस्था लागू की गयी। उत्तराखण्ड राज्य के पक्ष में तथा 27 प्रतिशत आरक्षण के विरोध में गगन भेदी नारे लगाये गये। 1, 2 अगस्त 1994 को पौड़ी में उत्तराखण्ड राज्य की मांग को लेकर उत्तराखण्ड क्रांति दल के संरक्षक इन्द्रमणि बडौनी अन्य सात लोगों के साथ आमरण अनशन पर बैठे। 7 अगस्त को प्रशासन द्वारा उनकी गिरफ्तारी पर पूरा उत्तराखण्ड आन्दोलन की आँच में झुलस गया।

मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने ‘‘हमारा संकल्प उत्तराखण्ड राज्य, हमारा संकल्प उत्तराखण्ड का बहुमुखी प्रयास’’ शीर्षक से तमाम समाचार पत्रों में विज्ञापन प्राकाशित करवाया जिसमें ‘उत्तराखण्ड मे सेवा व समता की पहल’ का ऐलान करते हुए कहा गया था कि उत्तराखण्ड के लोगों को उत्तरप्रदेश की सेवाओं में 2 प्रतिशत का विशेष आरक्षण की व्यवस्था हेतु केन्द्र को प्रस्ताव प्रेषित किया गया है। उत्तराखण्ड में चलने वाली बसों में छात्रों को 50 प्रतिशत भाड़े में छूट दी जाऐगी। उत्तराखण्ड के तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के पदों पर स्थानीय लोगों को छूट दी जाऐगी, हिलकैडर सख्ती से लागू किया जाऐगा।

उत्तराखण्ड की भिन्न भौगोलिक स्थिति के बावजूद जनसंख्या के आधार पर ग्राम सभाओं की परिसमन और मात्र 3 प्रतिशत से कम आरक्षरण लागू करने के सरकारी आदेशों ने पर्वतीय क्षेत्र की जनता को लामबद्ध होकर आन्दोलन करने के लिए विवश कर दिया था। हिल कैडर को सख्ती से लागू करने, ग्राम सभाओं का स्वरूप यथावत रखने व पूरे उत्तराखण्ड को 27 प्रतिशत आरक्षण की परिधि में लेने की मांग को लेकर यूं तो जुलाई 1994 से ही आन्दोलन की शुरूआत हो चुकी थी लेकिन 2 अगस्त को पौड़ी प्रेक्षागृह के बाहर उत्तराखण्ड क्रांति दल ने आमरण अनशन की शुरूआत कर पृथक राज्य आन्दोलन को जो व्यापकता प्रदान की, वह उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के इतिहास में अगस्त क्रांति साबित हुई।

पहाड़ की जनता के व्यापक हित में मात्र तीन मुद्दों को लेकर 2 अगस्त 1994 को पौड़ी प्रेक्षागृह के बाहर उत्तराखण्ड क्रांति दल के वयोवृद्ध नेता इन्द्रमणि बडौनी, रतनमणी भट्ट, डाॅ0 वासुवानन्द पुरोहित, प्रेम दत्त नौटियाल, पान सिंह रावत, विष्णुदत्त बिन्जोला, बिशन पाल परमार व दौलतराम पोखरियाल आमरण अनशन पर बैठे थे। इसी दिन नगर पालिका हाॅल में सम्पन्न उत्तराखण्ड क्रांति दल की केन्द्रीय कार्यकारिणी की बैठक के निर्णयानुसार गढ़वाल मण्डल में दिवाकर भट्ट व कुमाऊँ मण्डल में आन्दोलन के संचालन का दायित्व पूरन सिंह डंगवाल को सौपा गया। इन दिनों आरक्षण के मुद्दे पर पर्वतीय क्षेत्र के छात्रों ने भी आन्दोलन का बिगुल बजा दिया था। पौड़ी में अनशन शुरू होने के कारण आन्दोलनकारियों को मिल रहे जन समर्थन को देखते हुए, 5 अगस्त को हिमालयन इन्स्टीट्यूट देहरादून के संस्थापक स्वामी राम ने अनेक प्रलोभन देकर आन्दोलनकारियों का अनशन तुड़वाने का असफल प्रयास किया। 6 अगस्त को उत्तराखण्ड क्रांति दल कार्यकर्ताओं द्वारा पूरे शहर में पंक्तिबद्ध होकर जुलूस निकाला गया। इस दिन से सभी कार्यकर्ता अनशन स्थल को इस आशंका से घेरे रहे कि कहीं पुलिस प्रशासन प्रतिकूल स्वास्थ्य वाले अनशनकारियों को जबरन वहां से हटा न लें, क्योंकि एक दिन पूर्व कलक्ट्रेट परिसर की दीवार तोड़ने व उत्तराखण्ड क्रांति दल के रूख को देखकर पुलिस प्रशासन ने अनशन स्थल पर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी थी। दीवार तोड़ने के मामले में पुलिस ने प्रिवेंस ऑफ़ डैमेज टू पब्लिक प्रोपर्टी एक्ट 1984 सैक्शन 3, सी 7 की धारा 427 आई0 पी0 सी0 के अन्तर्गत अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ मामला दर्ज कर दिया गया था। अगस्त को ही जिलाधिकारी के सभाकक्ष में प्रशासनिक अधिकारियों की बैठक में उत्तराखण्ड क्रांति दल के आन्दोलन व अनशनकारियांे के स्वास्थ्य की स्थिति की समीक्षा की गई। प्रशासन ने शान्ति व्यवस्था बनाए रखने के लिये जनपद में इंटर मीडिएट स्तर के शिक्षण संस्थानों को पहले ही 10 अगस्त तक के लिये बन्द कर दिया था। शान्ति व्यवस्था के मद्देनजर ही पूरे जनपद में 2 महीने के लिये धारा 144 लगाकर जुलूस व जनसभाओं पर प्रतिबंध के साथ बिना अनुमति के लाउडस्पीकर के प्रयोग पर भी प्रतिबंध लगा दिया। 


रामपुर तिराहा कांड

    इस सब के बावजूद जब आन्दोलनकारी अनशन से उठने को तैयार नहीं हुए तो 8 अगस्त को पुलिस ने लाठी चार्ज कर श्री बडौनी सहित सभी आमरण अनशनकारियों को जबरन उठा लिया।

1 सितम्बर 1994 को खटीमा में पुलिस की बर्बरता के कारण एक खौफनाक हादसा हुआ। पुलिस ने पृथक राज्य की मांग व आरक्षण नीति का शांतिपूर्वक विरोध करने वाले आन्दोलनकारियों पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी, जिसमें सात लोग मारे गये और कई घायल हुए। 2 सितम्बर को मंसूरी में पुलिस ने आन्दोलनकारियों पर गोलियाँ चलायी, जिसमें 8 लोग मारे गये। इनमें दो महिलाऐं हंसा धनाई व बेलमती चैहान गोली की शिकार हुई। इसी दिन पौड़ी में विशाल रैली का आयोजन हुआ। 2 अक्टूबर 1994 में संयुक्त संघर्ष समिति द्वारा आयोजित रैली में भाग लेने जा रहे आन्दोलनकारियों पर मुजफ्फरनगर मे गोलियां चलाई गई व कई महिलाओं के साथ अभद्रता की गई। जो आज खटिमा, मंसूरी और मुजफ्फरनगर की घटनाऐं मानव इतिहास में एक कलंक बनकर रह गई।

पृथक राज्य आन्दोलन में उत्पन्न हिंसा के दौरान खटीमा व मंसूरी में पुलिस के हाथों कई आन्दोलनकारियों के मारे जाने के बाद भी केन्द्र सरकार का मौन न टूटने पर उत्तराखण्ड संयुक्त संघर्ष समिति ने दिल्ली जाकर ही सरकार के द्वार पर दस्तक देने के लिए संसद कूच की घोषणा की थी। अपने निर्णय को अंजाम तक पहुंचाने के लिए आंदोलनकारियों ने सितम्बर से ही बड़े पैमाने पर तैयारियाँ शुरू कर दी थी। 2 अक्टूबर 1994 को होने वाली रैली के लिए दिल्ली सरकार से स्वीकृति लेने और स्थान के चयन का दायित्व दिल्ली की उत्तराखण्ड आन्दोलन संचालन समिति और उत्तराखण्ड क्रांति दल के कुछ वरिष्ठ नेताओं को सौंपा गया जिन्हें रैली की अनुमति प्राप्त करने में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

रैली के आयोजन की तैयारियाँ दिल्ली में जोर-शोर से चल रही थी। 1 अक्टूबर 1994 को दिन ही में कुमाऊँ क्षेत्र के लोगों का दिल्ली पहुंचना शुरू हो गया था। 1 अक्टूबर की रात गढ़वाल मण्डल के आन्दोलनकारियों की बसे जो दिल्ली रैली में हिस्सा लेने जा रही थी। मुजफ्फरनगर के रामपुर चैराहे पर रोक ली गयी तथा उत्तरप्रदेश पुलिस द्वारा उन आन्दोलनकारियों पर अमानवीय अत्याचार किये गये तथा महिलाओं के साथ दुराचार किया गया। इस घटना में उत्तराखण्ड के कई आन्दोलनकारी मारे गये तथा कई घायल हो गये।

पुलिस द्वारा आन्दोलनकारी महिलाओं पर लाठीचार्ज किया गया तथा महिलाओं के साथ दुराचार भी किया गया। पुलिस अत्याचार तथा फायरिंग में 8 लोगों की मृत्यु हो गयी। उत्तर प्रदेश सरकार के इशारे में हुई इस घटना की समस्त विश्व व भारत में निन्दा हुई। मामला मानवाधिकार व महिला आयोग तक पहुंचा तो उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किसी भी प्रकार के अत्याचार की घटना से इन्कार कर दिया गया। मुजफ्फर नगर काण्ड के विरोध में अगले दिन पूरे उत्तराखण्ड में उग्र प्रदर्शन हुए।

कुंवर सिंह खत्री इस काण्ड के विषय में बताते हैं-
1 अक्टूबर 1994 को हमारी बस सवेरे नागनाथ पोखरी (चमोली) से दिल्ली रैली के लिये निकली। रास्ते में विभिन्न अवरोधों को पार करते हुए हम रात 11 बजे सिसौना रामपुर तिराहे पर पहुंचे हमें पता नहीं था कि हमसे पहले वहां कितना नरसंहार हुआ है? हमने देखा कि हमारे गाड़ी के आगे से कई गाड़ियां रास्ता जाम किये हुए थी, कुछ शोरगुल भी सुनायी दे रहा था। इतने में कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष एस0एस0 बत्र्वाल हाथ में डण्डा लिये हमारी गाड़ी के सामने यह कहते-कहते आये कि हमारे आदमी पिट गये हैं और आप लोग बैठे हैं। इतने में हमारी गाड़ी के कई लोगों के साथ, मै भी गाड़ी से उतरा और आगे जाकर देखा कि चमोली जिले के ही हमारे साथी कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति गाड़ी नं0-यू0पी0-6160 से आये थे। जिसमें महिलायें भी थी। उनके सिर पर पट्टी बांधी जा रही थी, वह बुरी तरह कराह रहे थे। चारों ओर शोर हो रहा था लोगों के समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें? पुलिस कर्मी हाथों में डंडे लिए हुए थे, कुछ सिपाही लाठियों से बुरी तरह से आन्दोलनकरियों को पीट रहे थे। इतना ही नही वे गन्दी-गन्दी गालियांे का भी प्रयोग कर रहे थे। जिसे सुनकर ही शर्म आ रही थी। कुछ समय पश्चात् मै जब अपनी गाड़ी मे लौटा तो तुरन्त बाद पुलिस वालों ने बाहर से ईटों व डण्डों से हमारी गाड़ियों पर मारना शुरू कर दिया। देखते-देखते सड़क पर काँच का ढेर लग गया और कहने लगे ‘‘आओ किसे चाहिए उत्तराखण्ड? हम देते हैं तुम्हें उत्तराखण्ड।’’ यह सब देखकर ड्राइवर ने गाड़ी निकालने का काफी प्रयास किया पर आगे पीछे से सारा रास्ता जाम हो चुका था। गाड़ी की लाइट भी पुलिसवालों ने तोड़ डाली थी। तत्पश्चात् गाड़ी में सवार लोगों ने अपनी सीटों के नीचे अपने सिर छिपा लिये थे। उस वख़्त हम अपने ईष्ट देवताओं को याद कर रहे थे और सोच रहे थे कि अच्छा हुआ हमने महिलाओं को कर्मचारी संगठन की बस में बैठा दिया। जिसमें मुख्यरूप से शकुन्तला कनवासी, बिमला चैहान सक्रिय थी। न जाने वे किस हाल में होंगी? क्योंकि सड़क पर बराबर मारपीट, शोर मच रहा था। लोग इधर उधर दौड़ रहे थे। क्षण-भर के लिए सिसौना रामपुर तिराहे पर खाकी वर्दीधारियों का एक छत्र राज हो चुका था। हमारी गाड़ी के 18 शीशे टूट चुके थे। र्मात व जिन्दगी से झूलते हुए आन्दोलनकारी यह नहीं समझ पाये कि यह क्या हो रहा है और इसे कौन करवा रहा है व क्यों करवा रहा है, इसको रोकने के लिये किसके पास जायें? कौन इनको रोकेगा?

मुजफ्फर नगर काण्ड ने उत्तराखण्ड आन्दोलन में सभी वर्गों सभी राजनीतिक पार्टियों को एक छत के नीचे लाकर खड़ा कर दिया। अब सब जन की एक ही मांग थी, अलग उत्तराखण्ड राज्य।


शहीद स्मारक


मुजफ्फरनगर काण्ड घटित होने के बाद वहीं के रामपुर गांव के निवासी पं0 महावीर शर्मा द्वारा घटना स्थल पर ही आन्दोलन के शहीदों की स्मृति में शहीद स्मारक बनाने हेतु खसरा नं0 915 में 816 वर्ग गज भूमि उत्तराखण्ड क्रांति दल (डी) को हस्तगत करायी गयी। जिस पर अक्टूबर 1995 में भव्य शहीद स्मारक बनाया गया। आज भी प्रत्येक वर्ष इस घटना की याद में उत्तराखंड में सामाजिक संगठनों व दलों द्वारा रैलीया निकाली जाती है तथा इस घटना को काले दिन के रूप मे याद किया जाता है।  



--डॉ हिमानी ऐरी  के शोध से  साभार 



















Saturday 19 September 2020

Gulzar-Sab Kuch Waise Hi Chalta Hai-Gulzar Nazm-Gulzar Poem

 सब कुछ वैसे ही चलता है 


सब कुछ वैसे ही चलता है 

जैसे चलता था जब तुम थी,

रात भी वैसे ही, सर मूंदे आती है 

दिन भी वैसे ही आँखे मलता जागता है 

तारे सारी रात जम्हाइयाँ लेते हैं 

सब कुछ वैसे ही चलता है 

जैसे चलता था जब तुम थी।  




Sab Kuch Waise hi Chalta Hai
Photo-the Conversation.com


काश तुम्हारे जाने पर 

कुछ फर्क तो पड़ता जीने में 

प्यास न लगती पानी की 

बाल हवा में न उड़ते 

या धुंआ निकलता सांसो से। 

सब कुछ वैसे ही चलता है 

Sunday 6 September 2020

उत्तराखण्ड आंदोलन की पृष्ठ्भूमि-उत्तराखण्ड राज्य की माँग के विभिन्न चरण-उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन-DeodarOnline





उत्तराखण्ड आंदोलन की पृष्ठ्भूमि  


    उत्तराखण्ड की मांग भी स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ चलती रही। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान देश को आजाद कराने के अलावा उत्तराखण्ड का जनमानस ब्रिटिश साम्राज्य से उत्तराखण्ड की भौगोलिक विभिन्नताओं के कारण अलग राज्य बनाने का निरन्तर प्रयास कर रहे थे। यहां की भौगोलिक परिस्थितियां हमेशा से अलग रही हैं। इस बात को यहां के जनमानस ने बहुत पहले ही समझ लिया था। प्राचीन समय से ही यहां की जनता का सामाजिक व्यवहार, संस्कृति, खान-पान भाभर के लोगों से अलग रहा है। राजवंशो के राज्य में भी भाभर का बहुत ही कम क्षेत्र रहा है। कत्यूरी से गोरखा तक पहाड़ का शासन पहाड़ से ही संचालित होता रहा था। अंग्रेजों के आगमन के बाद पहाड़ को संयुक्त प्रांत के अन्तर्गत रख दिया गया उसके उपरान्त पहाड़ का शासन भाभर से संचालित हुआ, और शुरू हुआ पहाड़ की उपेक्षा का दोैर जिसने पहाड़ की जनता को अलग राज्य बनाने के लिए प्रेरित व उद्वेलित किया। 

व्यापक दृष्टिकोण से देखा जाए तो आजादी से पूर्व व आजादी के कई दशकों बाद भी उत्तराखण्ड की जनता की घोर उपेक्षा हुई। उसका भरभूर शोषण ही नही हुआ बल्कि उसे सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक, चारित्रिक एवं राजनीतिक स्वर पर भी बिल्कुल पंगु बनाया गया। भारत की आजादी के बाद अंग्रेज तो अपने देश लौट गये लेकिन पश्चिम की उस परम्परा को ऐसे शासकों के हवाले कर गए जिस व्यवस्था में एक बाड़े में बन्द हजारों भेड़ों को एक अश्वारोही ग्वाला मनचाही दिशा मे हांक ले जाता है। उत्तराखण्ड के लोगों को भी ठीक इसी तरह हांकने का प्रयास हुआ। अंग्रेजों के अत्याचारों घायल पर्वतीय लोगों को अपने देश की सत्ता से भी जब घावों का मरहम नहीं मिल पाया तो वे दर्द व टीस से छटपटा उठे।

Uttarakhand Andolan
Naveen Samachar

उत्तराखण्ड आन्दोलन मुख्य रूप से तीन चरणों में सम्पन्न हुआ। प्रथम चरण में स्वतंत्रता से पूर्व राज्य की मांग है। प्रारम्भ में जब उत्तराखण्ड अंग्रेजी हुकुमत के अधीन था। हालांकि इस समय देश की स्वतंत्रता प्रमुख लक्ष्य थी, परन्तु इसी के साथ उत्तराखण्ड का एक वर्ग अलग उत्तराखण्ड की मांग को भी स्वतंत्रता आन्दोलन के साथ-साथ जारी रखा हुआ था। 

    1947 में देश की आजादी के बाद 1947 से 1979 उत्तराखण्ड क्रांति दल के निर्माण के समय तक द्वितीय चरण में उत्तराखण्ड आन्दोलन चला। इस चरण में उत्तराखण्ड आन्दोलन सरकारी उपेक्षा के कारण कुछ मंद सा पड़ गया। राजनीतिक पार्टियां अपने निजी स्वार्थों व हितों के लिये उत्तराखण्ड को अलग करने के पक्ष में नही थी। भाजपा ने तो अपने घोषणा पत्र में भी उत्तराखण्ड को समर्थन न देने व अपने सिद्धान्तों के विपरीत होने की बात तक कह दी थी। हालांकि विभिन्न बुद्धिजीवी, छोटे संगठन, पत्र-पत्रिकाऐं अपने स्तर पर उत्तराखण्ड आन्दोलन को जीवित रखे हुए थे तथा जन चेतना का कार्य कर रहे थे।

1979 में मंसूरी मे उत्तराखण्ड क्रांति दल की स्थापना के बाद उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन का तीसरा चरण माना जाता है। उत्तराखण्ड क्रांति दल की स्थापना के बाद उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन मे एक नयी जान आ गयी। पार्टी के निर्माण के बाद चले जन आन्दोलन बड़े उग्र व उग्रत्तर होते चले गये तथा सन् 2000 में इन आन्दोलनों के चलते उत्तराखण्ड एक अलग राज्य के रूप में परिणित हो गया।





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Friday 4 September 2020

Amrita Pritam -Hindi Kavita-Pahchan-Mera_Pata-Rozi-Best of Amrita Pritam

 
Photo-theseer

पहचान 

तुम मिले 
तो कई जन्म 
मेरी नब्ज़ में धड़के 
तो मेरी सांसों ने तुम्हारी सांसों का घूंट पिया 
तब मस्तक में कई काल पलट गए---

एक गुफ़ा हुआ करती थी 
जहाँ मैं थी और एक योगी 
योगी ने जब बाजुओं लेकर 
मेरी सांसों को छुआ 
तब अल्लाह कसम!
यही महक थी जो उसके होंटो से आई थी---
यह कैसी माया कैसी लीला
कि शायद तुम ही कभी वह योगी थे 
या वही योगी है--
जो तुम्हारी सूरत में मेरे पास आया है 
और वही मैं हूँ ---- और वही महक है ---



अमृता प्रीतम !




मेरा पता 

आज मैंने 
अपने घर का नंबर मिटाया है 
और गली के माथे पर लगा 
गली का नाम हटाया है 
और हर सड़क की 
दिशा का नाम पोंछ दिया है 
पर अगर आपको मुझे ज़रूर पाना है 
तो हर देश के, हर शहर की,
हर गली द्वार खटखटाओ 
यह एक शाप है, यह एक वर है 
और जहाँ भी 
आज़ाद रूह की झलक पड़े 
समझना वह मेरा घर है--


अमृता प्रीतम !


रोज़ी 

नीले आसमान के कोने में 
रात-मिल का साइरन बोलता है 
चाँद की चिमनी से 
सफ़ेद गाढ़ा धुँआ उठता है 

सपने- जैसे कई भट्टियां हैं 
हर भट्टी में आग झाँकता हुआ 
मेरा इश्क़ मजदूरी करता है 

तेरा मिलना ऐसे होता है  
जैसे कोई हथेली पर 
एक वक़्त की रोज़ी रख दे

जो खाली हंडिया भरता है 
राँध-पकाकर अन्न परसकर 
वही हाँडी उल्टा रखता है 

बची आँच पर हाथ  है 
घड़ी पहर को लेता है 
और ख़ुदा का शुक्र मानता है

रात-मिल  साइरन बोलता है 
चाँद  चिमनी में से 
धुँआ इस उम्मीद पर निकलता है 
 
जो कमाना है वही खाना है 
न कोई टुकड़ा कल का बचा है 
न कोई टुकड़ा कल के लिए है---



अमृता प्रीतम !















AMRITAPRITAM-HINDI KAVITA-KUFRA--DEODARONLINE-अमृता प्रीतम - हिंदी कविता-कुफ़्र

 कुफ़्र 


आज हमने एक दुनियाँ बेची
और एक दिन ख़रीद लिया 
हमने कुफ़्र की बात की 

सपनों  का एक थान बुना था
एक गज़ कपड़ा फाड़ लिया 
और उम्र की चोली सीली 




आज हमने आसमान के घड़े से 
बादल का एक ढकना उतारा
और एक घूंट चांदनी पी ली 

यह जो एक घड़ी हमने 
मौत से उधार ली है 
गीतों से इसका दाम चुका देंगे!









Wednesday 27 May 2020

हिन्दी कविता - तुम्हारी मौजूदगी - Hindi Kavita - Tumhari Maujadgi - DeodarOnline

तुम्हारी मौजूदगी      


तुम्हारा होना मेरे लिये उस बसन्त की तरह है,
जिसका इंतजार मैने तब से किया
जब मैने पहला बसन्त देखा, और तुम्हें भी।
ये बसन्त बहुत इतरा रहा है,
फूलों की पंखुड़ियाँ और नाजुक हो रही हैं। 
बहार आने का ये अलग ही ढंग है।
शायद तुमसे ही सीखा है मौसम ने ये मिजाज
हर रोज पहले से ज्यादा रौनक चैहरा तुम्हारा

बसन्त

 
क्या तुम्हें पता है?
इस बार बसन्त अपना कुछ रंग तुम में छोड़ गया है।
लेकिन चुप-चाप, आहिस्ता-आहिस्ता
दबे पाँव जंगलों में, तुम्हारा जादू,
तुम्हारी चंचल हंसी की तरह, घुल रहा है।
गुम-सुम खड़ी तुम, झरने के निनाद मे,
चुपके से मेरे कानों मे वो बात बोल जाती हो
जो सिर्फ मै और शायद ये बसन्त ही जानता है
और मैं वो  खामोश पानी हूँ,
जिसमे तुम अपनी परछाई देख सकती हो।
वो विरान रात जिसे सिर्फ तुम्हारा इंतजार रहा हमेशा।  

(अमित कुमार )


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